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॥ श्री गणेशाय नमः ॥

अ­र्ग­ला­स्तो­त्र­म्


॥ ॐ न­म­श्च­ण्डि­का­यै ॥ श्री­च­ण्डि­का­ध्या­न­म् । ॐ ब­न्धू­क­कु­सु­मा­भा­सां प­ञ्च­मु­ण्डा­धि­वा­सि­नी­म् । स्फु­र­च्च­न्द्र­क­ला­र­त्न­मु­कु­टां मु­ण्ड­मा­लि­नी­म् ॥ त्रि­ने­त्रां र­क्त­व­स­नां पी­नो­न्न­त­घ­ट­स्त­नी­म् । पु­स्त­कं चा­क्ष­मा­लां च व­रं चा­भ­य­कं क्र­मा­त् ॥ द­ध­तीं सं­स्म­रे­न्नि­त्य­मु­त्त­रा­म्ना­य­मा­नि­ता­म् । अ­थ­वा । या च­ण्डी म­धु­कै­ट­भा­दि­दै­त्य­द­ल­नी या मा­हि­षो­न्मू­लि­नी या धू­म्रे­क्ष­ण­च­ण्ड­मु­ण्ड­म­थ­नी या र­क्त­बी­जा­श­नी । श­क्तिः शु­म्भ­नि­शु­म्भ­दै­त्य­द­ल­नी या सि­द्धि­दा­त्री प­रा सा दे­वी न­व­को­टि­मू­र्ति­स­हि­ता मां पा­तु वि­श्वे­श्व­री ॥ अ­थ वि­नि­यो­गः । ॐ अ­स्य श्री­अ­र्ग­ला­स्तो­त्र­म­न्त्र­स्य वि­ष्णु­रृ­षिः । अ­नु­ष्टु­प्छ­न्दः । श्री­म­हा­ल­क्ष्मी­र्दे­व­ता । श्री­ज­ग­द­म्बा­प्री­त­ये स­प्त­श­ति­पा­ठा­ङ्ग­त्वे­न ज­पे वि­नि­यो­गः ॥ अ­थ स्तो­त्र­म् । मा­र्क­ण्डे­य उ­वा­च - ॐ ज­य त्वं दे­वि चा­मु­ण्डे ज­य भू­ता­प­हा­रि­णि । ज­य स­र्व­ग­ते दे­वि का­ल­रा­त्रि न­मो­ऽस्तु ते ॥ १ ॥ ज­य­न्ती म­ङ्ग­ला का­ली भ­द्र­का­ली क­पा­लि­नी । दु­र्गा शि­वा क्ष­मा धा­त्री स्वा­हा स्व­धा न­मो­ऽस्तु ते ॥ २ ॥ म­धु­कै­ट­भ­वि­ध्वं­सि वि­धा­तृ­व­र­दे न­मः । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ३ ॥ म­हि­षा­सु­र­नि­र्ना­शि भ­क्ता­नां सु­ख­दे न­मः । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ४ ॥ धू­म्र­ने­त्र­व­धे दे­वि ध­र्म­का­मा­र्थ­दा­यि­नि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ५ ॥ र­क्त­बी­ज­व­धे दे­वि च­ण्ड­मु­ण्ड­वि­ना­शि­नि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ६ ॥ नि­शु­म्भ­शु­म्भ­नि­र्ना­शि त्रि­लो­क्य­शु­भ­दे न­मः । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ७ ॥ व­न्दि­ता­ङ्घ्रि­यु­गे दे­वि स­र्व­सौ­भा­ग्य­दा­यि­नि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ८ ॥ अ­चि­न्त्य­रू­प­च­रि­ते स­र्व­श­त्रु­वि­ना­शि­नि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ९ ॥ न­ते­भ्यः स­र्व­दा भ­क्त्या चा­प­र्णे दु­रि­ता­प­हे । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १० ॥ स्तु­व­द्भ्यो भ­क्ति­पू­र्वं त्वां च­ण्डि­के व्या­धि­ना­शि­नि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ ११ ॥ च­ण्डि­के स­त­तं यु­द्धे ज­य­न्ति पा­प­ना­शि­नि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १२ ॥ दे­हि सौ­भा­ग्य­मा­रो­ग्यं दे­हि दे­वि प­रं सु­ख­म् । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १३ ॥ वि­धे­हि दे­वि क­ल्या­णं वि­धे­हि वि­पु­लां श्रि­य­म् । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १४ ॥ वि­धे­हि द्वि­ष­तां ना­शं वि­धे­हि ब­ल­मु­च्च­कैः । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १५ ॥ सु­रा­सु­र­शि­रो­र­त्न­नि­घृ­ष्ट­च­र­णे­ऽम्बि­के । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १६ ॥ वि­द्या­व­न्तं य­श­स्व­न्तं ल­क्ष्मी­व­न्त­ञ्च मां कु­रु । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १७ ॥ दे­वि प्र­च­ण्ड­दो­र्द­ण्ड­दै­त्य­द­र्प­नि­षू­दि­नि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १८ ॥ प्र­च­ण्ड­दै­त्य­द­र्प­घ्ने च­ण्डि­के प्र­ण­ता­य मे । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ १९ ॥ च­तु­र्भु­जे च­तु­र्व­क्त्र­सं­सु­ते प­र­मे­श्व­रि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ २० ॥ कृ­ष्णे­न सं­स्तु­ते दे­वि श­श्व­द्भ­क्त्या स­दा­म्बि­के । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ २१ ॥ हि­मा­च­ल­सु­ता­ना­थ­सं­स्तु­ते प­र­मे­श्व­रि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ २२ ॥ इ­न्द्रा­णी­प­ति­स­द्भा­व­पू­जि­ते प­र­मे­श्व­रि । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ २३ ॥ दे­वि भ­क्त­ज­नो­द्दा­म­द­त्ता­न­न्दो­द­ये­ऽम्बि­के । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ २४ ॥ भा­र्यां म­नो­र­मां दे­हि म­नो­वृ­त्ता­नु­सा­रि­णी­म् । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ २५ ॥ ता­रि­णि दु­र्ग­सं­सा­र­सा­ग­र­स्या­च­लो­द्भ­वे । रू­पं दे­हि ज­यं दे­हि य­शो दे­हि द्वि­षो ज­हि ॥ २६ ॥ इ­दं स्तो­त्रं प­ठि­त्वा तु म­हा­स्तो­त्रं प­ठे­न्न­रः । स­प्त­श­तीं स­मा­रा­ध्य व­र­मा­प्नो­ति दु­र्ल­भ­म् ॥ २७ ॥ इ­ति श्री­मा­र्क­ण्डे­य­पु­रा­णे अ­र्ग­ला­स्तो­त्रं स­मा­प्त­म् ॥

॥ ॐ श्यामाशिवभ्यां नमः ॥